भारत के पहले रॉकेट से तुलना क्यों?
ISRO की बड़ी उपलब्धि : इसरो अध्यक्ष वी. नारायणन ने नए रॉकेट की तुलना भारत के पहले रॉकेट से की, जिसे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने बनाया था। उन्होंने बताया कि पहला रॉकेट 17 टन का था और केवल 35 किलोग्राम भार को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक ले जा सकता था। जबकि अब इसरो 75,000 किलोग्राम (75 टन) भार को ले जाने वाले रॉकेट पर काम कर रहा है, जिसकी ऊंचाई 40 मंजिला इमारत के बराबर होगी।
रॉकेट की खासियत
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75 टन भार को लो अर्थ ऑर्बिट (600–900 किमी ऊंचाई) में ले जाने में सक्षम।
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पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित, जो भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
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अमेरिका के 6,500 किलोग्राम वाले सैटेलाइट को लॉन्च करने की क्षमता, जिससे भारत की वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ी है।
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सैन्य संचार, पृथ्वी अवलोकन और नेविगेशन जैसे क्षेत्रों में भारत की ताकत को नई ऊंचाई देगा।
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इसरो पहले से ही नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) पर काम कर रहा है, जिसमें पुन: प्रयोग योग्य पहला चरण होगा। यह नया रॉकेट भी उसी दिशा में एक अहम कदम है।
इसरो के 2024-25 के बड़े मिशन
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NAVIC सैटेलाइट – भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम मजबूत करने के लिए।
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N1 रॉकेट लॉन्च – नई तकनीक वाला अगली पीढ़ी का रॉकेट।
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अमेरिकी संचार उपग्रह का प्रक्षेपण – LVM3 रॉकेट से 6,500 किलो वजनी ब्लॉक-2 ब्लूबर्ड सैटेलाइट (AST SpaceMobile का), जो स्मार्टफोन को सीधे अंतरिक्ष से इंटरनेट से जोड़ेगा।
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GSAT-7R – भारतीय नौसेना के लिए विशेष संचार उपग्रह, जो जीसैट-7 (रुक्मिणी) की जगह लेगा।
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टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेशन सैटेलाइट (TDS) – भविष्य के मिशनों के लिए नई तकनीकों का परीक्षण करेगा।
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स्पेस स्टेशन – 2035 तक 52 टन वजनी अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का लक्ष्य।
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शुक्र ऑर्बिटर मिशन – ग्रहों की खोज में भारत का अगला बड़ा कदम।
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Author: haryanadhakadnews
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