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नया सेशन शुरू, निजी स्कूलों की मानमानी का अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ

निजी स्कूल संचालकों के मनमानी को लेकर अब शिक्षा विभाग की नींद टूटी
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धाकड़ न्यूज : स्कूलों में पहली से 9वीं तक की कक्षाओं के परीक्षा परिणाम अब तक सभी स्कूलों के आ चुके हैं। अब इसके बाद दौर शुरू होता है अगली कक्षा के दाखिले का। कुछ अभिभावक अपने बच्चों को अन्य बेहतर स्कूल में दाखिला दिलावाना चाहते हैं। बेहतर को मतलब कुछ भी हो सकता है। जैसे बड़े नाम वाले स्कूल, जिनका शहर में बड़ा नाम हो, जिनमें शहर के अमीर लोगों के बच्चें पढ़त हो या फिर जो विज्ञापन देकर अपनी ब्रांडिंग ज्यादा करवा रहे हो। ऐसे बड़े स्कूलों की चकाचौंध को देखकर एक मीडियम क्लास का आदमी भी चाहता है कि उसके भी बच्चें ऐसे बड़े स्कूलों में पढ़े जिससे उनका भी नाम हो। या किसी के पड़ोस में ऐसा कोई घर हो, या कोई दोस्त या रिश्तेदार या कोई और संबंधी जिसके बच्चें किसी बड़े स्कूल में पढ़ते हो  तो भी यह लालसा जग उठती है कि हम भी अपने बच्चों को इस बड़े स्कूल में पढ़ाए।

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यहां तक तो कोई दिक्कत नहीं, समस्या शुरू होती है अब

जब अभिभावक बच्चों को लेकर इन स्कूलों में पहुंचते है तो उन्हें कह दिया जाता है कि यहां पर सीट ही नहीं है। एडमिशन फुल हो चुके हैं। यह बात सुनते ही अभिभावक के मन में यह बात आ जाती है कि यह अच्छा स्कूल है। इसमें शायद सबसे अच्छी पढ़ाई हो होगी तभी तो एडमिशन फुल हो चुके हैं। उसके बाद वो रिकवेस्ट करते हैं कि किसी तरह उनके बच्चों का एडमिशन यहां हो जाए तो उन्हें कहा जाता है कि आप एक काम करिए रजिस्ट्रेशन करा लें या फिर आप अपना नाम, पता और मोबाइल नंबर हमारी डायरी में नोट करवा दें। हम आपको सूचित कर देंगे अगर हमारे यहां सीट बन जाएगी। स्कूल वाले कहते हैं कि आपके बच्चे को प्राथमिकता के आधार पर कॉल की जाएगी।

मनमानी

अब अगर आपके पास काॅल आई और आपको सीट मिल गई तो आपके बच्चे का एडमिशन हो जाएगा। उसके बाद दौर शुरू होता है स्कूलों की मनमानी का। इसी कड़ी में हर बार की तरह ही इस बार भी स्कूलों की मनमानी जारी है। कुछ स्कूलों ने अपनी कमाई के लिए अपने मनचाहे पब्लिशर की किताबें, मनचाही कॉपी और अपनी मनचाही वर्दी,  बच्चों के शूज और बाकी जो भी स्कूल में बच्चों को जरूरत पड़ती है। उन सभी सामान के लिए अलग से दुकान तय कर रखी है। इनमें से कुछ बड़े-बड़े ऐसे स्कूल हैं जिन्होंने कुछ खास पब्लिशरों की किताबों को जरूरी बताकर उन्हें ही लगवाया है। जबकि प्रशासन की तरफ से यह गाइडलाइन जारी हो चुकी है कि सभी एनसीईआरटी की ही पुस्तकें लगवाई जाए लेकिन कुछ स्कूल इस बात को अनदेखा कर रहे हैं। उन्हें प्रशासन की कोई चिंता नहीं है उन्हें तो मतलब है सिर्फ और सिर्फ अपने कमीशन अपनी कमाई से। अपनी इस कमाई को बढ़ाने के लिए ही वह कुछ ऐसी ऐसी पुस्तक लगवा रही हैं जिनका एक सेट का खर्चा लगभग तीन-चार हजार रुपये तक आ रहा है जबकि अगर इसी कक्षा पुस्तकें एनसीईआरटी की ली जाए तो यह 800 से हजार रुपए तक में आ जाती है। इसके अलावा बच्चों की वर्दी लेने के लिए अभिभावकों पर मनचाही दुकान से लेने का दबाव बनाया जाता है। इस कारण अभीभाव को पर इसका अतिरिक्त बोझ पड़ता है लेकिन स्कूलों में दाखिले के लिए उन्हें इस कीमत को मजबूरन चुकाना ही पड़ता है।

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