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हर घर तिरंगा अभियान के बाद बढ़ी राष्ट्रीय ध्वज की संख्या, पानीपत में सालाना आठ करोड़ तिरंगों का किया जा रहा पुनर्चक्रण

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‘हर घर तिरंगा अभियान’ के बाद से राष्ट्रीय ध्वज की संख्या बढ़ी है। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस समेत कई कार्यक्रमों के बाद तिरंगा के सम्मानजनक निष्पादन (पुनर्चक्रण) की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई। औद्योगिक नगरी पानीपत में इसकी पहल हुई और अब सालाना छोटे-बड़े करीब आठ करोड़ राष्ट्रीय ध्वज का सम्मानजनक निष्पादन हो रहा है।

साथ ही सेना की इस्तेमाल हो चुकी बुलेट प्रूफ जैकेट व प्लास्टिक के राष्ट्रीय ध्वज का पुनर्चक्रण कर ऐसे दस्तानों का निर्माण किया जा रहा है, जिन्हें धारदार हथियार से भी नहीं काटा जा सकता। कपड़े के तिरंगा से धागा बना दोबारा राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया जा रहा है। यह अभियान न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि देशवासियों के तिरंगे के प्रति सम्मान और राष्ट्र प्रेम का भी जीवंत उदाहरण है।

इस ऐतिहासिक पहल की शुरुआत सेवानिवृत्त मेजर जनरल असीम कोहली की सोच से हुई। दरअसल, राष्ट्रीय ध्वज के इस्तेमाल के बाद कार्यक्रम स्थल या फिर सड़कों के किनारे पड़े ध्वज देखकर उनका मन खिन्न होता। कोहली ने तीन साल पहले सेवानिवृति के बाद एक एनजीओ ‘सेवाज निसीम’ बनाई।

इसके माध्यम से पुराने झंडों को एकत्रित करने का काम किया और राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (एनटीटीएम) की मदद से आइआइटी दिल्ली से संपर्क किया। आइआइटी दिल्ली की टीम और अटल सेंटर आफ एक्सीलेंस पानीपत से हाथ मिलाया। पुनर्चक्रण के लिए पानीपत के बलाना में स्थित शिवालिक रग्ज कंपनी को जिम्मेदारी दी गई।

इन संस्थानों के विशेषज्ञों ने झंडों में प्रयुक्त फैब्रिक, उनके रासायनिक गुणों और पुनर्चक्रण पर शोध किया। नतीजा यह रहा कि देश में पहली बार सम्मानजनक, विज्ञानी और तकनीकी रूप से प्रमाणित माडल विकसित हुआ।

दो लाख राष्ट्रीय ध्वज से शुरुआत: कोहली

सेवानिवृत्त मेजर जनरल असीम कोहली ने सेना में लगभग 36 वर्षों तक सेवा दी है। वह बताते हैं कि जब उन्होंने यह मिशन शुरू किया, तब सिर्फ दो लाख राष्ट्रीय ध्वज का री-साइकल (पुनर्चक्रण) करना भी बड़ी चुनौती थी।

सबसे पहले उनकी एनजीओ की टीमों ने देशभर के आर्मी कैंप से झंडे एकत्रित करने शुरू किए। सेना के अनुशासन और सम्मान की भावना ने इस मुहिम को गति दी। बाद में टीम ने इसे पैन इंडिया प्रोजेक्ट के रूप में घोषित किया।

उन्होंने बताया कि इस पूरे कार्यक्रम को देशव्यापी बनाने के लिए इंडस्ट्री के साझेदारों और कई कारपोरेट संस्थानों से बातचीत चल रही है। कई आर्मी कैंप में ऐसी व्यवस्था की गई है, जहां इस्तेमाल राष्ट्रीय ध्वजों को एकत्रित किया जाए और फिर उनको कंटेनर की मदद से पानीपत पहुंचाया जाए।

पानीपत में ऐसे हो रहा राष्ट्रीय ध्वज का पुनर्चक्रण

पानीपत के बलाना गांव के पास स्थित शिवालिक रग्ज फैक्ट्री में राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानजनक तरीके से पुनर्चक्रण करने की पूरी प्रक्रिया अत्यंत विज्ञानी ढंग से संपन्न होती है।

  • पहला चरण : पुराने ध्वजों को लेयर के आधार पर अलग किया जाता है। इस दौरान काम करने वाले कर्मचारी चप्पल-जूते नहीं पहनते।
  • दूसरा चरण : कपड़े और फैब्रिक के ध्वज अलग-अलग किए जाते हैं। फैब्रिक को तोड़कर उच्च गुणवत्ता का यार्न बनाया जाता है।
  • तीसरा चरण : यार्न से पुन: कपड़ा तैयार किया जाता है।
  • चौथा चरण : इस कपड़े को राष्ट्रीय ध्वज पुर्ननिर्माण व विभिन्न उत्पादों जैसे होम टेक्सटाइल, बैग्स, ग्लव्ज आदि में उपयोग किया जाता है।
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