हरियाणा का 59 साल का सियासी सफर: कांग्रेस ने सबसे लंबा शासन किया, तीन बार प्रचंड बहुमत से बनाई सरकार
हरियाणा ने अपने 59 साल के राजनीतिक इतिहास में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर गठित हुए इस राज्य ने अब तक 14 विधानसभा चुनाव देखे हैं, जिनमें कभी प्रचंड बहुमत वाली सरकारें बनीं तो कभी जोड़-तोड़ से सत्ता का समीकरण तय हुआ। लेकिन अगर पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें, तो यह साफ दिखाई देता है कि हरियाणा की सियासत पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का ही प्रभाव रहा है।
कांग्रेस का सर्वाधिक शासनकाल — 31 साल 7 माह
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी ने कुल 31 वर्ष 7 माह तक शासन किया है। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस ने कई बार स्थिर और बहुमत वाली सरकारें बनाईं। राज्य में तीन मौकों पर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और पार्टी ने अपने बलबूते सरकार चलाई। इन कार्यकालों में कई महत्वपूर्ण नीतियां बनीं और हरियाणा ने औद्योगिक, शैक्षणिक और कृषि विकास के क्षेत्र में नई पहचान हासिल की।
अन्य दलों का योगदान भी अहम
कांग्रेस के बाद राव बीरेंद्र सिंह की पार्टी, विशाल हरियाणा पार्टी, ने भी सत्ता का स्वाद चखा। हालांकि उनका कार्यकाल केवल 224 दिनों का रहा, लेकिन हरियाणा की राजनीति में यह पार्टी अपनी छाप छोड़ गई।
जनता पार्टी की सरकार भी प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई। चौधरी देवीलाल की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार करीब 738 दिन यानी दो साल से अधिक समय तक रही। इसके बाद जनता दल का दौर आया, जिसने हरियाणा की सियासत को नए मोड़ पर पहुंचाया।
जनता दल की सरकार ने सवा चार साल तक शासन किया और इस दौरान राज्य में कई दिग्गज नेता मुख्यमंत्री बने — जिनमें चौधरी देवीलाल, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला, बनारसी दास गुप्ता और मास्टर हुकम सिंह प्रमुख हैं।
इसी प्रकार, हरियाणा विकास पार्टी ने भी करीब तीन साल तक सत्ता संभाली, जबकि इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का शासन पांच साल छह महीने तक चला।
भाजपा का लगातार शासन — 2014 से अब तक
2014 में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने हरियाणा की राजनीति का नया अध्याय लिखा। पहली बार भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई और 2019 में गठबंधन के साथ दोबारा सत्ता में आई। इस तरह से भाजपा का शासन प्रदेश में अब तक लगभग 11 वर्ष पूरा कर चुका है। इस दौरान राज्य में डिजिटलाइजेशन, आधारभूत संरचना, और सामाजिक योजनाओं पर विशेष फोकस किया गया है।
तीन बार लगा राष्ट्रपति शासन
हरियाणा के इतिहास में राजनीतिक अस्थिरता के दौर भी आए। अब तक राज्य में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, जिनकी कुल अवधि लगभग एक वर्ष (365 दिन) रही। इन अवधियों में प्रदेश में प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहा।
केवल तीन बार मिला प्रचंड बहुमत
1967 से 2024 तक हुए 14 विधानसभा चुनावों में केवल तीन मौकों पर ही किसी पार्टी को स्पष्ट और प्रचंड बहुमत मिला। बाकी अवसरों पर या तो सरकारें गठबंधन के सहारे बनीं या फिर “जादुई आंकड़े” के आसपास के समीकरणों पर टिककर टिकीं।
कई बार ऐसा भी हुआ जब त्रिशंकु विधानसभा बनी और सत्ता गठन के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति को बल मिला।
राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय प्रदेश
हरियाणा की राजनीति का स्वभाव हमेशा गतिशील रहा है। यहां जातीय समीकरण, किसान राजनीति, औद्योगिक विकास और खेल उपलब्धियों का सधा हुआ मिश्रण देखने को मिलता है। यही कारण है कि हरियाणा देश की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाने वाला राज्य बन चुका है।
59 साल के इस सफर में हरियाणा ने कांग्रेस, जनता दल, इनैलो और अब भाजपा जैसे कई दलों की सरकारें देखीं — लेकिन हर दौर में जनता ने अपने राज्य के भविष्य को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई।
हरियाणा का यह राजनीतिक सफर अब 60वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है — और एक बार फिर प्रदेशवासियों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि अगले दशक में सत्ता का समीकरण किस ओर झुकेगा।
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Author: haryanadhakadnews
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