केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लायमेंट गारंटी स्कीम (मनरेगा) का नाम बदलने और काम के दिनों की संख्या बढ़ाने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी।
सूत्रों के मुताबिक, इस योजना का नाम अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया जाएगा और इसके तहत काम के दिनों की संख्या भी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन कर दी जाएगी।
अभी 100 दिनों की रोजगार गारंटी दी जाती है
मनरेगा या नरेगा का मकसद ग्रामीण इलाकों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है। इसके तहत एक पात्र परिवार को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों की रोजगार गारंटी दी जाती है। इस योजना को 2005 में लागू किया गया था।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एनआरईजीए), जिसका नाम बाद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) के रूप में बदल दिया गया, एक श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य “काम के अधिकार” की गारंटी देना है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है।
मनरेगा को नए स्वरूप में ढालने की तैयारी
मनरेगा योजना शुरू हुए लगभग दो दशक हो चुके हैं। लंबा समय बीतने के साथ योजना में कई तरह की कमियां और विसंगतियां उभर आई हैं। इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार शीर्ष स्तर पर मनरेगा के संपूर्ण ढांचे में व्यापक सुधार पर गंभीरता से विचार कर रही है।
सूत्रों के अनुसार योजना के ढांचे में बदलाव के साथ इसके नाम में परिवर्तन पर भी मंथन हो चल रहा है। लेकिन समाचार एजेंसी प्रेट्र के अनुसार कैबिनेट ने मनरेगा का नाम बदलने और इसके तहत कार्यदिवस बढ़ाने को मंजूरी दे दी है।
मजदूरी भुगतान समय पर नहीं होना सबसे बड़ी समस्या
योजना में सुधार की जरूरत कई वजहों से महसूस की जा रही है। सौ दिन रोजगार के वैधानिक अधिकार के बावजूद देश में केवल लगभग सात प्रतिशत परिवारों को ही पूरे सौ दिन का रोजगार मिल पाता है।
मजदूरी भुगतान समय पर नहीं होना सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। बैंकिंग गड़बडि़यों और प्रशासनिक देरी के कारण 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं हो पाता और विलंब मुआवजा भी नगण्य होता है।
कई राज्यों में फर्जी जाब कार्ड बनाकर करोड़ों रुपये की मजदूरी निकालने के मामले सामने आए हैं। डिजिटल हाजिरी प्रणाली में फोटो और डाटा दुहराव, गलत अपलोडिंग और तकनीकी त्रुटियों की वजह से गड़बडि़यां बढ़ी हैं। ऐसे में कई राज्यों को मजबूरी में डिजिटल हाजिरी को अस्थायी रूप से रोककर मैनुअल सत्यापन अपनाना पड़ा है।
बजट की कमी, कमजोर ऑडिट
इसके अलावा मनरेगा के तहत होने वाले कई कार्य गांवों की वास्तविक जरूरतों के अनुरूप नहीं होते। कुछ क्षेत्रों में कार्य की गुणवत्ता कमजोर पाई गई है या काम अधूरा छोड़ दिया जाता है। बजट की कमी, कमजोर ऑडिट और स्थानीय स्तर पर निगरानी में सुस्ती भी समस्याओं को बढ़ाती रही है। इन सारी विसंगतियों को दूर करने और योजना को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से सरकार अब व्यापक पुनर्संरचना पर विचार कर रही है।
वित्तीय ढांचे में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए
इसी क्रम में हाल के दिनों में योजना के वित्तीय ढांचे में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। भविष्य के जल संकट से निपटने के लिए केंद्र ने अगले वर्ष देशभर में एक करोड़ नई जल संचय संरचनाओं के निर्माण का लक्ष्य तय किया है। इनका क्रियान्वयन जनसहभागिता और मनरेगा के तहत उपलब्ध राशि से किया जाएगा।
जल संकट से सबसे अधिक प्रभावित डार्क जोन जिलों में मनरेगा फंड का 65 प्रतिशत, यलो जोन में 40 प्रतिशत और सामान्य जिलों में 30 प्रतिशत हिस्सा केवल जल संरक्षण संरचनाओं के लिए अनिवार्य किया गया है।
Author: haryanadhakadnews
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